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Chaos in bhopal memorial hospital

Chaos in Bhopal Memorial Hospital and Research Center (BMHRC)

10.08.2022
गैस पीड़ितों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार की ओर से स्थापित किए गए भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) में गैस पीड़ित मरीजों को दवाइयां ही नहीं मिल रही हैं। जिन मरीजों का डायलिसिस किया जाता है उनको भी जरूरी इंजेक्शन नहीं मिल पा रहे हैं। ऐसे में मरीज बाजार से महंगी दवाएं खरीदने को मजबूर हैं। कई मरीज आर्थिक तंगी के कारण दवाएं नहीं खरीद पा रहे हैं, ऐसे में उनका इलाज ही नहीं हो पा रहा है।आलम यह है कि यहां हररोज 15 से 20 मरीजों के डायलिसिस किए जाते हैं। लेकिन, डायलिसिस के बाद लगने वाले जरूरी इंजेक्शन और दवा ही नहीं मिल पाती है। भोपाल ग्रुप फोर इंफोर्मेशन एंड एक्शन संस्था की रचना ढींगरा ने इस संबंध में अस्पताल प्रबंधन और निगरानी समिति के साथ ही इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के जिम्मेदारों को अवगत भी कराया है, लेकिन मरीजों को कोई राहत नहीं मिली है।

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kayakalp award for hospital in bhopal

Raisen District Hospital of Bhopal got Kayakalp Award for the third time

भोपाल मिंटो हॉल में आयोजित कायाकल्प अवॉर्ड फंक्शन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान , स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी ,एसीएस सुलेमान एवं स्वास्थ्य आयुक्त के समक्ष जिला अस्पताल रायसेन को लगातार तीसरे साल कायाकल्प सांत्वना पुरस्कार प्राप्त हुआ। जिसे जिला अस्पताल के सिविल सर्जन एके शर्मा एवं आरएमओ डॉ विनोद परमार ने प्राप्त किया l अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं को उत्तम बनाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। जिसके फल स्वरुप लगातार तीसरे साल कायाकल्प अवॉर्ड सांत्वना पुरस्कार के रूप में प्राप्त हुआ है। इस पुरस्कार में 300000 की राशि अस्पताल की व्यवस्थाओं पर काम करने के लिए दिए हैं। इसमें से 25% अस्पताल में कायाकल्प के संदर्भ में अच्छा काम करने वाले स्टाफ को वितरित किया जाएगा lहर साल कायाकल्प अभियान के तहत जिला अस्पताल का मूल्यांकन तीन स्तर में किया जाता है सर्वप्रथम इंटरनल एसेसमेंट किया जाता है इंटरनल एसेसमेंट मैं 70% आने के बाद पियर एसेसमेंट होता है पियर असेसमेंट में 70% आने के बाद राज्य स्तरीय एसेसमेंट किया जाता है तथा राज्य स्तर में 70% अंक प्राप्त करने के पश्चात पुरस्कार वितरण किया जाता है। लगभग साढे 450 बिंदुओं पर जिला अस्पताल की गुणवत्ता एवं कार्य विधि कायाकल्प अभियान के तहत हर साल जांची जाती है।

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Gwalior treatment negligence case

Justice got justice after 9 years in Gwalior treatment negligence case

10.08.2022
ग्वालियर की 3 साल की मासूम बच्ची गार्गी की मौत के 9 साल बाद कोर्ट का फैसला आया है, जिसमें उपभोक्ता फोरम इंदौर ने ग्वालियर के मेहरा अस्पताल और मैस्कॉट अस्पताल पर 10 लाख का जुर्माना लगाया है। हालांकि इसके लिए मासूम के पिता ने थाने से लेकर उपभोक्ता फोरम कोर्ट तक लंबी लड़ाई लड़ी। अस्पताल में निमोनिया से पीड़ित बच्ची को आईवी फ्लूड दिया जाता रहा। साथ ही ट्रीटमेंट शीट से भी छेड़छाड़ की गई थी।
मासूम को निमोनिया होने पर उसके पिता ने इलाज के लिए उसे ग्वालियर के प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया था, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि बच्ची को बचाने के लिए वे उसे जिस अस्पताल में लेकर जा रहे हैं, वहां से वह लौटकर नहीं आएगी। दो प्राइवेट अस्पतालों के बिना डिग्री वाले डॉक्टर, ICU के अनट्रेंड स्टॉफ की लापरवाही से माता-पिता ने अपनी मासूम बच्ची को हमेशा के लिए खो दिया।

1 घंटे के भीतर 500ml नॉर्मल सलाइन की बोतल चढ़ाई

घटना 25 जनवरी 2013 की है। तीन साल की बेटी के पिता मनोज उपाध्याय ग्वालियर में एडवोकेट हैं। शहर के थाटीपुर चौहान प्याऊ में उनका निवास है। उन्होंने अपनी बेटी गार्गी को मेहरा बाल चिकित्सालय अनुपम नगर में भर्ती कराया। यहां के डॉक्टर डीडी शर्मा ने यहां से रेफर कर दिया। गार्गी को निमोनिया की शिकायत थी। मेहरा बाल चिकित्सालय में डॉक्टर आरके मेहरा अस्पताल के संचालक थे। डॉ. अंशुल मेहरा बच्चों के डॉक्टर थे। डॉ. अंशुल मेहरा खुद को एमडी पीडियाट्रिशियन यूएसए की एमडी डिग्री होना बताते हुए ग्वालियर में मरीजों के साथ धोखाधड़ी करते थे। बेबी गार्गी का इलाज भी एमडी पीडियाट्रिशियन यूएसए बताते हुए किया। गार्गी को निमोनिया होते हुए भी मेहरा हॉस्पिटल में 1 घंटे के भीतर 500ml नॉर्मल सलाइन की बोतल चढ़ा दी गई और तबीयत बिगड़ने पर भी आईवी फ्लूड दिया जाता रहा। इससे बेबी गार्गी के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ा। डॉ. अंशुल मेहरा ने बच्ची को भर्ती कराने के 3 घंटे बाद वेंटिलेटर की आवश्यकता बताते हुए मैस्कॉट हॉस्पिटल रेफर कर दिया था।

बिना डिग्री के एमडी पीडियाट्रिशियन कर रहे थे इलाज
गार्गी के पिता एडवोकेट मनोज उपाध्याय ने मध्यप्रदेश मेडिकल काउंसिल में मैस्कॉट के डॉ. अंशुल मेहरा की एमडी पीडियाट्रिशियन की डिग्री पर सवाल करते हुए शिकायत की थी। इस पर डॉ. अंशुल मेहरा ने मध्यप्रदेश मेडिकल काउंसिल भोपाल के समक्ष माफी मांगी थी। साथ ही कहा था कि वह एमडी पीडियाट्रिशियन नहीं है और भविष्य में उक्त डिग्री का उल्लेख अपने नाम के आगे नहीं करेंगे।

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Fire at Jabalpur hospital

Fire breaks out at Netaji Subhas Chandra Bose Medical Hospital in Jabalpur, no casualties

10.08.2022
जबलपुर के न्यू लाइफ मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि सोमवार को नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल अस्पताल के शिशु वॉर्ड के करीब आग लग गई। हालांकि घटना में कोई हताहत नहीं हुआ। लेकिन एक बार फिर मध्यप्रदेश में फायर एनओसी और फायर सेफ्टी को लेकर बहस तेज हो गई है। जानकारी के अनुसार सोमवार को नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के बच्चा वार्ड में 40 बच्चे भर्ती थे, जब उसके करीब शॉर्ट सर्किट हुआ. जिसके चलते वार्ड में धुआं फैल गया और लाइट चली गई।गौरतलब है कि पिछले डेढ़ साल में प्रदेश के छह अस्पतालों में आगजनी से 23 लोगों की मौत हुई है। बता दें कि अस्पताल खोलने या नवीनीकरण के लिए 12 दस्तावेज मांगे जाते हैं। इसमें 11 तो जरूरी हैं लेकिन फायर एनओसी नहीं। सिर्फ फायर एनओसी के लिए आवेदन की पावती के आधार पर पिछले 2 साल में राज्य में 200 से ज्यादा नए अस्पतालों को मंजूरी दे दी गई है। हालांकि सरकार की तरफ से अकेले जबलपुर में फायर एनओसी नहीं होने तथा अन्य कमियां पाये जाने पर अब तक 24 अस्पतालों के पंजीयन निरस्त किये जा चुके हैं।नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने पूरे मामले पर कहा है कि फायर एनओसी नगर निगम देता है फिर हेल्थ डिपार्टमेंट लाइसेंस देता है। फायर एनओसी का पालन संबंधित लोगों ने किया है या नहीं ये देखना चाहिये, ये दोनों तरफ से लापरवाही होती है। इसलिये इस तरह की घटना होती है। इसमें सरकार सख्ती से कार्रवाई कर रही है।

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12th pass became a fake doctor

Health department raided, 12th pass youth was operating the hospital by becoming a doctor

08.08.2022
कोंडागांव। जिले के बीजापुर में अवैध तरीके से संचालित पोयम हॉस्पिटल में स्वास्थ्य अमले ने दबिश दी। एक युवक ने OPD पर्ची में खुद को MBBS डॉक्टर बताकर अवैध अस्पताल खोला। मामले की सूचना मिलने के बाद सभी अधिकारी वहां पहुंचे और संयुक्त कार्रवाई की गई।दरअसल, मामला कोंडागांव के ग्राम बीजापुर का है, जहां एक 12वीं पास युवक ने खुद को MBBS डॉक्टर बताकर अवैध रुप से एक अस्पताल खोला। बता दे कि ये अस्पताल अवैध रुप से संचालित किया जा रहा है। जैसी ही स्वास्थ अमले को इस मामले की सूचना मिली, वो सक्रिय हो गए और पोयम हॉस्पिटल में उन्होंने दबिश दी। नर्सिंग होम एक्ट के नोडल अधिकारी, ड्रग इंस्पेक्टर, खाद्य सुरक्षा अधिकारी और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त कार्रवाई की गई।

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Blood crisis in sms hospital,Jaipur

Blood crisis in Jaipur’s Sawai Mansingh Hospital

ब्लड बैंक खाली होने लगे हैं। निजी ब्लड बैंकों का बहुतायत में खुलना, ब्लड डोनेशन शिविरों में कई ब्लड बैंक को बुला लेना और ब्लड डोनेट नहीं करने सहित कई कारणों के चलते हालात इस स्थिति में पहुंच चुके हैं कि एसएमएस जैसे सरकारी ब्लड बैंक में एबी निगेटिव ब्लड ग्रुप है ही नहीं। ओ-निगेटिव महज दो यूनिट, एबी-पॉजिटिव 09, ए-निगेटिव 10 और बी-निगेटिव केवल 09 यूनिट ही बचा है। ब्लड बैंक में यह स्टोर बुधवार दोपहर 12 बजे तक था। ये ब्लड ग्रुप इमरजेंसी के लिए बचा कर रखे हैं और कॉमन सर्जरी या जरूरतमंद को मना किया जा रहा था। ब्लड की कमी को लेकर विशेष रिपाेर्ट।डोनेशन-सप्लाई में 12 हजार यूनिट से अधिक का फर्कअकेले एसएमएस में डोनेट और सप्लाई में 12 हजार यूनिट तक का फर्क है। एक जनवरी से 31 जुलाई तक महज 26,394 यूनिट ब्लड डोनेट हुआ, जबकि 38,960 यूनिट सप्लाई किया गया। यह सप्लाई अधिक ऐसे हो सकी कि एक यूनिट ब्लड से तीन-चार कंपोनेंट बनते हैं।

डिमांड बढ़ने से बढ़ी चिंता
छोटे-छाेटे ब्लड बैंक खोलने की वजह से परेशानी हुई है। कोशिश कर रहे हैं कि सभी जगह से ब्लड यहां पहुंचे। निशुल्क ब्लड की भी डिमांड बढ़ने से चिंता बनी हुई है। -डॉ. अमित शर्मा, इंचार्ज, ब्लड बैंक, एसएमएस।

कमी की बड़ी वजह ये

बिना किन्हीं प्लान के जिलेवार निजी छोटे-छोटे ब्लड बैंक खाेल दिए गए। ऐसे में सरकारी अस्पतालों में ब्लड बंद हो गया।
ब्लड बैंक की ओर से प्रलोभन (हेलमेट व अन्य) दिया जाता है और आर्गेनाइजर को 50 प्रतिशत तक नि:शुल्क ब्लड देने के लिए कहा जाता है। नतीजतन शिविरों का ब्लड निजी बैंक में जाता है और वहां से बेचा जाता है।
मई-जून-जुलाई में स्कूल-कॉलेज की छुट्टियां होती हैं तो तुलनात्मक रूप से कम कैंप लगते हैं और ब्लड की कमी हो जाती है।
कोई भी कैंप लगाता है तो कई ब्लड बैंक को बुला लेता है, नतीजतन एक बैंक के हिस्से में 15-25 यूनिट ही ब्लड आता है।6 घंटे बाद प्लाज्मा और आरबीसी ही मिलते हैं किसी भी ब्लड का छह घंटे में ब्लड बैंक तक पहुंचना जरूरी होता है। ऐसा इसलिए कि समयावधि में पहुंचने से पीआरबीसी, एफएफपी, आरडीपी, एसडीपी, क्रायो, पेरसिपिटेट कंपोनेंट को काम में ले सकते हैं। छह घंटे बाद प्लाज्मा और आरबीसी ही मिलते हैं।इन मरीजों के लिए बड़ी जरूरत, इसलिए मांग बढ़ी थैलीसीमिया के सभी मरीजाें, कैंसर पेशेंट सहित कई बीमारियाें के लिए बिना डोनर के ब्लड दिया जाता है। एसएमएस में रोजाना थैलीसीमिया के 40 बच्चों को, कैंसर और छोटी बच्चियों को 10 से 12, एक्सीडेंट केसेज में 20-25 यूनिट ब्लड दिया जाता है।

एसएमएस में ये बचा है अलग-अलग ब्लड ग्रुप
ए-पॉजिटिव36
बी-पॉजिटिव48
ओ-पॉजिटिव57
एबी-पॉजिटिव09
ओ-निगेटिव02
एबी-निगेटिव00
बी-निगेटिव09
ए-निगेटिव10

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Investigation service stopped in pmch

HIV and Hepatitis investigation stopped for one year due to lack of kit in PMCH of Patna

05.08.2022

पीएमसीएच को विश्वस्तरीय बनाया जा रहा है। एक छत के नीचे अंतरराष्ट्रीय स्तर की चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था हो रही है। लेकिन, ये भविष्य की बात है। फिलहाल हालत यह है कि राज्य के इस सबसे बड़े अस्पताल के क्लिनिकल पैथोलॉजी विभाग में करीब एक साल से एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और सी की जांच बंद है। जांच बंद होने का कारण किट खत्म होना बताया जा रहा है।इसकी लिखित जानकारी देने के बावजूद अबतक इन तीनों जांच के लिए किट उपलब्ध नहीं कराई गई है। क्लिनिकल पैथोलॉजी विभाग की ओपीडी में प्रतिदिन 250 से 275, जबकि सेंट्रल इमरजेंसी में 250 से 300 मरीज जांच कराने आते हैं। यानी प्रतिदिन 500 से अधिक मरीजाें की जांच की जरूरत होती है। चिकित्सकों की मानें तो इनमें 100 से अधिक मरीज एचआईवी और हेपेटाइटिस की जांच कराने वाले हाेते हैं। अस्पताल के अधीक्षक डॉ. आईएस ठाकुर ने बताया कि किट के लिए बीएमएसआईसीएल को लिखा जा चुका है। दवा या किट बीएमएसआईएल ही उपलब्ध कराता है। वहां से नहीं मिलने पर सोचा जाएगा। बगैर टेंडर किए लोकल परचेज नहीं कर सकते हैं।

प्राइवेट में लग रहे ~400
फिलहाल जांच कराने के लिए प्राइवेट में गरीब मरीजों को पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। चिकित्सकों के मुताबिक इन तीनों जांच (पैकेज) के लिए मरीजाें को करीब 400 रुपए खर्च करने पड़ते हैं।

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hospital operator in high court

The absconding hospital operator reached the shelter of the High Court

05.08.2022
जबलपुर के दमोह नाका स्थित न्यू लाईफ हॉस्पिटल अग्निकांड में 8 लोगों की मौत के बाद फरार हुए अस्पताल संचालक अब हाईकोर्ट की शरण में पहुंच गए हैं। न्यू लाईफ हॉस्पिटल के चार में से एक अस्पताल संचालक, डॉक्टर निशिथ गुप्ता ने जबलपुर हाईकोर्ट में अपनी अग्रिम ज़मानत की याचिका दायर की है। याचिका में सोमवार को हो सकती है सुनवाई।हाई कोर्ट मे दायर की गई अग्रिम ज़मानत याचिका में डॉक्टर निशिथ गुप्ता ने खुद को बेकसूर बताया है और जांच में सहयोग करने की शर्त पर गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत दिए जाने की मांग की है। हाईकोर्ट में दायर डॉक्टर निशिथ गुप्ता की अग्रिम जमानत याचिका पर सोमवार को सुनवाई हो सकती है।1अगस्त को हुए अग्निकांड में 8 लोंगों की जान लेने वाले जबलपुर के न्यू लाईफ हॉस्पिटल के 4 संचालक हैं जिनकी अस्पताल में 25-25 परसेंट की हिस्सेदारी है। डॉक्टर निशिथ गुप्ता के अलावा, डॉक्टर सुरेश पटेल, डॉक्टर संजय पटेल और डॉक्टर संतोष सोनी शामिल हैं।डॉक्टर संतोष सोनी को जबलपुर पुलिस ने कल उमरिया से गिरफ्तार किया हैं। जबकि निशिथ, सुरेश और संजय अब तक फरार हैं। आरोपी अस्पताल संचालकों पर पुलिस ने गैर इरादतन हत्या का अपराध उनकी तलाशी के लिए कई टीमें बनाकर पड़ोसी जिलों में तलाश कर रही हैं।

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Fraud in ayushman bharat scheme

Fraud in Ayushman Bharat Scheme in Uttar Pradesh

05.08.2022
यूपी के देवरिया में आयुष्मान भारत योजना के तहत इलाज में फर्जीवाड़ा का मामला सामने आया है. देवरिया के एक प्राइवेट हॉस्पिटल ने 387 फर्जी क्लेम के जरिए 17,11,800 रुपये भुगतान करा लिया. इस मामले की जांच तीन सदस्यीय टीम ने की थी. रिपोर्ट आने के बाद आयुष्मान भारत PMJAY और स्टेट हेल्थ एजेंसी ने अस्पताल प्रबंधन से क्लेम में ली गई रकम से दोगुनी यानी 34,23,600 रुपये जुर्माना वसूलने का आदेश दिया है.करीब एक महीने पहले देवरिया जिले के रुद्रपुर तहसील के रुद्रपुर कस्बे में आशुतोष हॉस्पिटल में स्वास्थ्य विभाग ने छापेमारी की थी. इस दौरान वहां अवैध अल्ट्रासाउंड मशीन पकड़ी गई और डॉक्टर एस. के. त्रिपाठी के खिलाफ कार्रवाई हुई. इसमें जांच के दौरान अस्पताल प्रबंधन की कई खामियां उजागर हुई थीं. सीएमओ ने अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंपी और अस्पताल में गड़बड़ियों का जिक्र किया. उन्होंने आयुष्मान भारत योजना के तहत यहां घपले की आशंका जताई थी.मामला गंभीर होने पर डीएम जे.पी. सिंह ने तीन सदस्यीय टीम गठित की. जांच के दौरान पता चला कि आयुष्मान योजना के तहत 387 फर्जी केस में क्लेम लिया गया. पूरी रिपोर्ट डीएम ने आयुष्मान भारत PMJAY और स्टेट हेल्थ एजेंसी को भेजी. आंतरिक जांच में भी फर्जी क्लेम की पुष्टि हुई. अस्पताल में आयुष्मान कार्ड धारकों के इलाज कराने के रिकॉर्ड की जांच की गई बहुत सारे मामले एक समान पाए गए. 387 ऐसे मामले थे जो पूरी तरह फर्जी पाए गए. अब अस्पताल प्रबंधन पर 34,23,600 रुपये जुर्माना लगाया गया है

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hospitals noc negligence in bhopal

Big Negligence in Bhopal: More than 400 Hospitals, Near Temporary NOC 225

राजधानी भोपाल में 400 से ज्यादा छोटे-बड़े हॉस्पिटल हैं। इनमें से टेम्प्रेरी NOC करीब 225 के पास है। बाकी के पास प्रोविजनल NOC है। चूंकि, आगजनी की 90% घटनाएं शॉर्ट सर्किट से होती हैं, इसलिए अब फायर के साथ इलेक्ट्रिक सेफ्टी भी देखी जाएगी। वहीं, हॉस्पिटलों ने प्रोविजनल के बाद टेम्प्रेरी NOC क्यों नहीं ली, इसका भी नगर निगम सर्वे करेगा। टीमें हकीकत जाने के लिए मैदान में उतरेंगी।जबलपुर के हॉस्पिटल में हुई आगजनी की घटना ने फायर सेफ्टी की पोल खोल दी है। ऐसा ही एक हादसा भोपाल में भी पिछले साल हो चुका है, जब प्रदेश के सबसे बड़े हमीदिया हॉस्पिटल के चिल्ड्रन वार्ड में आग लगी थी और कई नवजात जिंदा जल गए थे। जबलपुर हादसे के बाद भोपाल में एक बार फिर हॉस्पिटलों में आग से निपटने के इंतजामों पर फोकस किया जाने लगा है। इसके चलते राजधानी के सभी सरकारी और प्राइवेट हॉस्पिटलों में फायर ऑडिट किया जाएगा, ताकि हकीकत सामने आ सके। इसे लेकर बुधवार को अपर आयुक्त कमलेंद्र सिंह परिहार ने फायर ऑफिसरों की मीटिंग ली और हॉस्पिटलों की जांच करने के निर्देश दिए।

फायर के साथ इलेक्ट्रिक सेफ्टी का भी ऑडिट
शहर में हर रोज एवरेज 5 से 6 आगजनी की घटनाएं होती हैं। गर्मी में आंकड़ा 200% तक बढ़ जाता है। इनमें से 90% हादसे शॉर्ट सर्किट की वजह से होते हैं। यही कारण है कि अब हॉस्पिटलों में फायर के साथ इलेक्ट्रिक सेफ्टी पर भी ध्यान दिया जाएगा।नगर निगम के अपर आयुक्त कमलेंद्र सिंह परिहार ने बताया, इसी साल मार्च, अप्रैल-मई में चार टीमों ने साढ़े 3 सौ बिल्डिंग का निरीक्षण किया था। इनमें कई में खामियां पाई गई थीं। इस पर निगम ने नोटिस भी दिए थे। इन बिल्डिंगों में हॉस्पिटल भी शामिल थे। अब फिर से टीमें अलर्ट होगी और अपने-अपने एरिये के हॉस्पिटल में जाकर फायर और इलेक्ट्रिक सेफ्टी देखेगी।

जब नई बिल्डिंग बनाई जाती है तो उसके लिए प्रोविजनल एनओसी ली जाती है। यह एनओसी निगम देता है। एक साल के भीतर टेम्प्रेरी एनओसी निगम देता है। यह तब देता है जब निगम सारे पैमानों की जांच कर लेता है। प्रोविजनल एनओसी नक्शे पर दी जाती है। बिल्डिंग परमिशन, मालिकाना हक समेत अन्य जरूरी दस्तावेजों के आधार पर दी जाती है।

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