Rajasthan : DACP promotion chaos

सरकारी डॉक्टरों पर बाबूराज पड़ रहा भारी ।

सबसे ज्यादा अगर सिस्टम फेलियर है तो वो है, राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में । चिकित्सकों को नियमानुसार समयबद्ध पदोन्नति मिलती है लेकिन उस नियत समय पर वो पदोन्नति दी ही नहीं जाती है । सरकार और विभाग चाहता है कि चिकित्सक अपना काम 24×7 निष्ठा से करें, साथ ही सभी विभागीय लक्ष्यों को भी पूर्ण करें, लेकिन बात जब खुद विभाग की जिम्मेदारी की आती है तो वो फिसड्डी साबित होता है, किसी का प्रोबेशन समय पूरा नहीं होता, किसी का फिक्सेशन नहीं होता, किसी को एनओसी नहीं मिलती तो किसी को कुछ और समयबद्ध नहीं मिलता । हर चीज को डिले करके चिकित्सक को मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है ताकि वो अंततः मजबूर होकर, बाबूराज के आगे घुटने टेक दे और फिर चढ़ावा चढ़ावे । चिकित्सक का यह हाल कर दिया जाता है कि वो खुद आहत होकर मजबूरन बाबुओं के आगे नतमस्तक हो जाता है । इन बाबुओं को बड़े अधिकारियों की शह और प्राप्त है, कुछ सयाने तो यह कहते हैं कि अधिकारी भी इस बाबूराज के आगे आहत हैं, कमजोर हैं ।

सरकार ने चिकित्सकों को हर वर्ष की एक अप्रैल को समयबद्ध पदोन्नति देने का नियम बनाया था, जिसकी पालना में करीब 1500 चिकित्सकों की पदोन्नति 1 अप्रैल 2018 को होनी थी लेकिन बाबूराज के कारण नहीं हुई, 1 अप्रैल 2019 को कुछ लोग और जुड़ गए लेकिन पदोन्नति नहीं दी गयी, यानी करीब 1700 चिकित्सकों की पदोन्नति बकाया हो गयी ।

पूर्व में DPC की पदोन्नति के लिए चिकित्सकों को प्रत्येक वर्ष का वार्षिक प्रगति प्रतिवेदन (APR/ACR) एवं अचल संपत्ति विवरण (IPR) जमा करवाना होता था, लेकिन वर्तमान DACP बिना ACR/IPR के ही समयबद्ध तरीके से की जाती है, साथ ही, इस ACR और IPR का निदेशालय में कोई धणी-धोरी नहीं है, चिकित्सक अपना अपना रेकॉर्ड समय से भेज भी दें तो यह रास्ते मे पता नहीं कहाँ कहाँ अटक जाता है, और इस अनुभाग में पहुंच भी जाये तो दांयी से बांयी टेबल पर नहीं आता, वहां भी कमियां निकाल कर पटक दिया जाता है, भोग की आस में । चिकित्सक तो ये सोचकर आराम से बैठे होते हैं कि उनका रेकॉर्ड तो पहुंच गया है, और 1 अप्रैल को उनकी पदोन्नति हो जाएगी, उन्हें क्या पता कि किस बिल और भोलाराम के जीव में अटक रखा है उनका रिकॉर्ड ।

मई माह में डीओपी द्वारा पदोन्नति किये जाने वाले चिकित्सकों का रिकॉर्ड मांगे जाने पर निदेशालय के बाबूराज द्वारा आधा अधूरा रिकॉर्ड पकड़ा दिया जाता है, कायदे से रिकॉर्ड देने से पहले आंकड़े सार्वजनिक किए जाते हैं कि किसका कौनसा रेकॉर्ड बकाया है ताकि वो अपना अटका रिकॉर्ड निकलवा सके और कुछ बकाया हो तो जमा करवा सके । लेकिन बिना सूचित किये ही अधकचरे को आगे भिजवाया गया और 15 जून को जारी हुई लिस्ट में 1700 में से करीब 600 की ही पदोन्नति की गई, इसमें भी सीनियरिटी का ध्यान नहीं रखा गया है, साथ ही क्लीनिकल ब्रांच वालों को भी एसएमओ बना दिया गया है और फार्माकोलॉजी एवं कम्युनिटी मेडिसिन के एक डॉक्टर को एसएमओ तो उसी ब्रांच के दूसरे को जेएस बना दिया गया है, चार ACR वाले का नाम है लेकिन सैंकड़ों ऐसों का नाम नहीं है जिनकी पूरी 6 जमा थी, यानी भयंकर गफलत हुई है जिससे राज्य के हजार चिकित्सक तनाव में हैं ।

देखना दिलचस्प होगा कि अब बाकी छोड़े गए चिकित्सकों की लिस्ट 1 अप्रैल 2020 के बाद आएगी या पहले ?

पहले तभी आ सकती है जब इस बाबूराज का विरोध हो वो भी सक्षम स्तर पर । हालांकि सेवारत चिकित्सक संघ का मुख्य मुद्दा DACP रहा है लेकिन 2011 की DACP के बारे में उनकी पिछले 2 सालों से जो चुप्पी है वो भी कई सवाल खड़े करती है । करीब एक महीने से गलियारों में चर्चा थी कि केवल 600 की ही DACP हो रही है लेकिन किसी चिकित्सक के भी जूं नहीं रेंगी, जो कि चिंतनीय है । अब डेफर हो चुके चिकित्सकों के लिए इस बाबूराज से पार पाना आसान नहीं होगा । बाबुओं ने फर्जी विसंगतियों से भरी लिस्ट ही सचिवालय भेज दी और वहां से लिस्ट जारी भी हो गई, इससे सचिवालय के अधिकारियों की भी हो रही है किरकिरी, अब देखना यह है कि निदेशालय के अधिकारी तो इनका कुछ बिगाड़ नहीं पाए तो सचिवालय के अधिकारी भी कमतर साबित होते हैं या बाबूराज को रोक पाते हैं ?

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