Services started in AIIMS, bilaspur

25 OPD started in Himachal’s Bilaspur AIIMS, eight operation theaters ready

10.08.2022
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) कोठीपुरा की 25 ओपीडी एम्स अस्पताल भवन में शुरू हो गई हैं। इससे पहले आयुष भवन में ओपीडी चलाई जा रही थीं। आईपीडी शुरू करने का कार्य प्रगति पर है। सारी प्रक्रिया एक माह में पूरी की जाएगी। सितंबर में पीएम मोदी इसका शुभारंभ करेंगे। आयुष ब्लॉक से एम्स अस्पताल में ओपीडी शिफ्ट करने के बाद फिर से पंजीकरण करवाने के लिए टोकन सिस्टम शुरू हो गया है। टोकन के यूएचआईडी नंबर से लंबे समय तक अस्पताल में मरीज का रिकॉर्ड सुरक्षित रहेगा। ऑफलाइन पंजीकरण प्रक्रिया भी जारी रहेगी। पंजीकरण के लिए ओपीडी भवन में आठ काउंटर लगाए हैं। मरीज को केवल अपना विशिष्ट स्वास्थ्य पहचान नंबर (यूएचआईडी) याद रखना होगा। आईपीडी भवन भी तैयार है।सभी वार्ड में बिस्तर लग गए हैं। ऑब्जर्वेशन, स्पेशल वार्ड तैयार हैं। आपात भवन की दूसरी मंजिल में आठ ऑपरेशन थियेटर बनाए गए हैं। सभी उपकरण स्थापित कर दिए हैं। अस्पताल में 256 स्लाइस सीटी स्कैन मशीन लगाई गई है। इसकी विशेषता यह है कि इसकी क्षमता 256 स्लाइस प्रति सेकंड है। स्कैनर से मिलने वाली इमेज थ्री डी होगी। चंद मिनटों में यह पूरे शरीर को स्कैन करेगी। इस तकनीक की मदद से वेस्कुलर डिजिज की पहचान आसान होती है। एक्सरे मशीन स्थापित कर दी गई है। एमआरआई मशीन लगाई जा रही है। आईपीडी में शुरू में मरीजों को करीब 150 बिस्तरों की सुविधा मिलेगी। अभी से आईपीडी में प्रशिक्षु चिकित्सकों की तैनाती शुरू कर दी गई है। इसमें स्पेशल वार्ड से लेकर सामान्य वार्ड तक के बिस्तर शामिल हैं।

लैब का कार्य प्रगति पर
एम्स अस्पताल में मुख्य लैब का कार्य प्रगति पर है। बहरहाल, अस्पताल में टेस्ट के लिए सैंपल 75 नंबर कमरे में एकत्रित किए जा रहे हैं। बिलिंग काउंटर 7, 8 और 9 हैं। एक्सरे की सुविधा और यूएसजी आयुष ब्लॉक में ही चलाए जा रहे हैं।

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Refuses stay on neet pg counseling

Supreme Court refuses to stay NEET PG counseling

10.08.2022
सुप्रीम कोर्ट ने NEET PG 2022 स्कोर में विसंगतियों का आरोप लगाने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को NEET PG काउंसलिंग पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।कोर्ट ने कहा कि इस समय पर ऐसे निर्णय के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ कुछ डॉक्टरों द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी।इस याचिका में NEET PG 2022 उम्मीदवारों के प्रश्न पत्र और आंसर की जारी करने के निर्देश देने की मांग की गई थी।

क्‍या थी याचिकाकर्ताओं की मांग
याचिकाकर्ताओं ने आंसर की और प्रश्न पत्र जारी नहीं करने के राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड के फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि इस तथ्य को जानने के बावजूद NBA ने ऐसा किया जबकि इसके गंभीर दुष्‍परिणाम हो सकते हैं। याचिकाकर्ताओं सहित एनईईटी-पीजी 2022 उम्मीदवारों ने उनके नंबरों में विसंगति के मामले में रीइवेल्‍युएशन की अनुमति देने की मांग की थी।याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने आज पीठ को सूचित किया कि नीट पीजी 2021 से संबंधित एक याचिका भी अदालत में लंबित है। इसके चलते अदालत ने दोनों मामलों को एक साथ टैग किया और मामलों को अंतिम सुनवाई के लिए 25 अगस्त को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। काउंसलिंग पर रोक लगाने की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा एक अनुरोध के जवाब में अदालत ने कहा कि वह काउंसलिंग पर रोक लगाने का आदेश जारी नहीं कर सकती है। कांउसलिंग 01 सितंबर से शुरू होने की संभावना है।

NBA नहीं देता रीइवेल्‍यूएशन का मौका
वर्तमान याचिका उन डॉक्टरों द्वारा दायर की गई है जिन्होंने अपनी एमबीबीएस की डिग्री पूरी कर ली है और राज्य चिकित्सा परिषद के तहत रजिस्‍टर्ड हैं।याचिकाकर्ताओं के अनुसार, उन्होंने NEET PG 2022 के अपने स्कोर में गंभीर बेमेल पाया. हालांकि, NBA उम्मीदवारों को आंसर शीट में अपने नंबरों का पुनर्मूल्यांकन का विकल्प प्रदान नहीं कर रहा है।याचिकाकर्ताओं ने बताया है कि नेशनल टेस्टिंग एजेंसी द्वारा आयोजित NEET UG परीक्षा के उम्मीदवारों को आंसर की को चुनौती देने का विकल्प मिलता है. कई अन्य प्रतिष्ठित परीक्षाएं जैसे IIT-JEE, CMAT, CLAT परीक्षाएं भी आंसर की को चुनौती देने का विकल्प देती हैं। हालांकि, कोर्ट के आदेश के बाद अब काउंसलिंग समय पर ही आयोजित की जाएगी।

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Doctors gave a new life to patient

Delhi AIIMS doctors gave new life to a factory worker by performing surgery

10.08.2022

27 साल की उम्र ही क्या होती है। अगर फैक्ट्री में काम करने वाले वर्कर का हाथ बुरी तरह से कुचल उठे तो सोचिए, वो मंजर कैसा रहा होगा। घटना नवंबर 2019 की है। सुबह के 5 बज रहे थे और यूपी के सहारनपुर के रहने वाले जख्मी युवक को अस्पताल में भर्ती किया जाता है। उसका बायां हाथ (फोरआर्म) हाइड्रोलिक प्रेशिंग मशीन से पूरी तरह से क्रश हो गया था। फोरआर्म का मतलब अग्रभुजा यानी हाथ की कोहनी से आगे का हिस्सा पूरी तरह से जख्मी था। पूरे तीन साल तक कई स्तर की सर्जरी करने वाले एम्स दिल्ली (Aiims Delhi) के डॉक्टरों ने आखिरकार कमाल कर दिया। उस मरीज के लिए यह चमत्कार से कम नहीं है। इसके साथ ही एम्स देश का पहला अस्पताल बन गया, जहां एक मरीज के लिए सफलतापूर्वक नया फोरआर्म ही तैयार कर दिया गया।

बस एक राहत की बात थी
डॉक्टर बताते हैं कि उस दिन जब फैक्ट्री वर्कर अस्पताल आया था तो कोहनी के जोड़ से चोट 5 सेमी दूर तक थी। कलाई की तरफ स्किन, सॉफ्ट टिशूज, नर्व्स, मशल्स और हड्डी चोटिल हुई थी, बाकी हाथ को उतना नुकसान नहीं पहुंचा था। फैक्ट्री में बड़ी-बड़ी मशीनों को हैंडल करने में हाथ का ही इस्तेमाल होता है और ऐसे में काफी जोखिम होता है। इस केस में डॉक्टरों ने तीन स्टेज में आगे बढ़ने का फैसला किया। राहत की बात यह थी कि युवक की हथेली अब भी सामान्य स्थिति में थी और अपना फंक्शन कर रही थी।

डॉक्टरों ने बनाया प्लान
डॉ. मनीष सिंघल की अगुआई वाली प्लास्टिक सर्जरी की टीम ने मरीज की स्थिति का गंभीरता से आकलन किया। साफ हो चुका था कि यह बहुत ही जटिल केस है। हाथ जख्मी नहीं है और आगे के हिस्से यानी फोरआर्म में काफी चोट है जिससे अलग तरह की समस्या पैदा हो जाती है और ऐसे केस में हाथ का रीअटैचमेंट संभव नहीं होगा क्योंकि आगे का हाथ तो बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका था।

6 घंटे का टाइम कीमती होता है
प्लास्टिक, पुनर्निर्माण और बर्न सर्जरी डिपार्टमेंट के प्रमुख सिंघल ने कहा, ‘ऐसे मामलों में सर्जरी तभी संभव हो पाती है जब मरीज को दुर्घटना के 6 घंटे के भीतर अस्पताल लाया गया हो। किस्मत से, इस मरीज को इस समय के भीतर लाया गया था।’इस केस में आमतौर पर दो विकल्प बनते थे, मरीज को प्रोस्थेटिक हाथ दिया जाए या हाथ के क्षतिग्रस्त हिस्से को हटाकर फंक्शन कर रही हथेली को हाथ से अटैच किया जाए। लेकिन बाद वाले विकल्प में हाथ की लंबाई घट सकती थी। ऐसे में डॉक्टरों की टीम ने फोरआर्म को फिर से बनाने का फैसला किया और उसके साथ हथेली को जोड़ा जाना था।

पहला स्टेप
चोटिल हाथ से हथेली को जल्द से जल्द अलग करना था और क्रश हो चुके हिस्से को अलग। ऐसे में कोहनी की चोट की फिर से सिलाई की गई।

दूसरा स्टेप
अब हथेली को शरीर के दूसरे हिस्से से अटैच करना था। डॉक्टरों ने टखने के करीब बाएं पैर से इसे अटैच कर दिया। देखने और समझने में यह अजीब बात थी लेकिन डॉक्टरों के ऐसा करने के पीछे वजह चिकित्सकीय थी।

प्लास्टिक और बर्न्स सर्जरी विभाग के डॉ. राजा तिवारी ने बताया कि हम हथेली की संवेदनशीलता को बरकरार रखना चाहते थे इसीलिए इसे पैर से जोड़ा गया। अगर इसे शरीर के किसी दूसरे हिस्से से जोड़ा गया होता तो सेंसेशन खत्म हो सकता था। जब हाथ को वापस अपनी जगह लाया गया तो हमने बाएं पैर की उसी नर्व्स को भी लिया था। यही नहीं, हथेली को अस्थायी तरीके से अटैच करने के लिए पैर की हड्डियों का पता लगाना आसान था। डॉ. तिवारी ने कहा कि हमने पैर को चुना क्योंकि उसमें अतिरिक्त नसें, रक्त वाहिकाएं और मांसपेशियां होती हैं।

आगे की चुनौती
अब नया फोरआर्म बनाने के लिए डॉक्टरों ने पैरों से दो टिशू यूनिट निकाला। पहला हिस्सा घुटने के नीचे वाले हिस्से से लिया गया और दूसरा जांघ के पास से निकाला गया। आखिर में पैर में लगाई गई हथेली को अलग कर नए फोरआर्म के आगे जोड़ना था जिससे तंत्रिका तंत्र की मरम्मत या कहिए ऑपरेशन पूरा होता।सर्जरी टीम में शामिल डॉ. शिवांगी साहा ने बताया कि धमनियां, नसें और मांसपेशी को हड्डी से जोड़ने वाले ऊतक होते हैं जो अंगुलियों को मांसपेशियों से कनेक्ट करते हैं। हाथों का मूवमेंट करने के लिहाज से कमांड और कंट्रोल करने में ब्रेन के लिए कोई समस्या नहीं थी। बस इतना जरूर है कि मांसपेशी की ताकत कम हो जाती है।आज की तारीख में मरीज चाबी का इस्तेमाल कर सकता है, कुछ उठा सकता है, पानी की बोतल ले सकता है और कोहनी की ताकत भी अच्छी है। वह अपने बाएं हाथ से बड़ी चीजें भी पकड़ सकता है। वह अपनी अंगुलियों और अंगूठे के बीच में पेन पकड़ सकता है और पास की मांसपेशियों की मदद से लिख सकता है।सिंघल ने बताया कि महामारी के दौरान फॉलोअप कर पाना एक और बड़ी चुनौती रहा। हमने लॉकडाउन के दौरान एक टेली-रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम भी किया। प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट से डॉ. शशांक चौहान और डॉ. सुवशीष दाश और ऑर्थोपेडिक व एनेस्थीशिया विभागों से डॉ. समर्थ मित्तल और डॉ. सुलगना भी टीम में शामिल थे। फिजियोथेरेपी का भी एक बड़ा रोल था जिसे डॉ. मीसा ने लीड किया था।

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Sesonal diseases in rajasthan

Outbreak of seasonal diseases started in Rajasthan

10.08.2022
राजस्थान में बारिश के साथ मौसमी बीमारियों का दौर शुरू हो गया है। जयपुर समेत राज्य के सभी हॉस्पिटल की ओपीडी में इन दिनों वायरल फीवर के केस तेजी से बढ़ रहे है। राजस्थान के सबसे बड़े हॉस्पिटल एसएमएस में इन दिनों ओपीडी में मरीजों की संख्या 9 हजार के पार पहुंच गई है। वायरल फीवर, खांसी-बुखार, जुकाम के अलावा डेंगू-मलेरिया के केस भी सामने आ रहे है। मेडिकल हेल्थ डिपार्टमेंट राजस्थान के मुताबिक पिछले एक सप्ताह में पूरे राज्य में 88 केस डेंगू के डिटेक्ट हुए है, जिसमें से 2 मरीजों की मौत हो गई।जयपुर एसएमएस के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर और यूनिट हेड डॉ. पुनीत सक्सेना की माने तो अभी वायरल फीवर, सामान्य बुखार, खांसी-झुकाम के केस बढ़ रहे है। इनमें कई कुछ केस डेंगू-मलेरिया के भी, लेकिन अभी ये बहुत कम है। उन्होंने बताया कि लोगों को भीड़-भाड़ वाले एरिया में मास्क लगाकर जाना चाहिए, जिससे लोग संक्रमित बीमारियों से बचने में तो मदद मिलेगी, कोरोना से भी खुद को बचाया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि जैसे बारिश का दौर धीमा पड़ेगा मच्छर बढ़ेंगे और फिर डेंगू-मलेरिया व चिकनगुनिया के केस भी बढ़ने लगेंगे।

बच्चों में उल्टी-दस्त की शिकायतें आने लगी
मौसम की इस बीमारी से बच्चे भी तेजी से चपेट में आ रहे है। जयपुर के जेके लॉन हॉस्पिटल में अब ओपीडी में भीड़ बढ़ने लगी है। इसमें ज्यादातर मामले सामान्य बुखार और खांसी-जुकाम के अलावा उल्टी-दस्त के भी मरीज है। एसएमएस मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर और जेके लॉन रेयर डिजीज सेंटर में नियुक्त डॉ. प्रियांशु माथुर की माने तो इन दिनों कुछ बच्चों के हाथ-पैर में दाने की भी शिकायतें देखने को मिल रही है। हालांकि ये सभी अभी सामान्य वायरल वाले ही केस है, इनमें कोई नया वायरल का केस सामने नहीं आया है।

प्रतापगढ़ जिले में दो गुने हुए डेंगू के मरीज
राजस्थान में जिलेवार स्थिति देखे तो प्रतापगढ़ जिले में डेंगू तेजी से बढ़ रहा है। 27 जुलाई तक प्रतापगढ़ में डेंगू के प्रतापगढ़ 25 केस सामने आए थे, जो 5 अगस्त तक बढ़कर 61 हो गए। वहीं अलवर में पिछले एक सप्ताह में 2 डेंगू के केस डिटेक्ट हुए है और दो ही मौत हुई है। प्रतापगढ़, अलवर के अलावा डेंगू प्रभावित जिलाें में कोटा, दौसा, करौली, भरतपुर और जयपुर भी है।

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Chaos in bhopal memorial hospital

Chaos in Bhopal Memorial Hospital and Research Center (BMHRC)

10.08.2022
गैस पीड़ितों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार की ओर से स्थापित किए गए भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) में गैस पीड़ित मरीजों को दवाइयां ही नहीं मिल रही हैं। जिन मरीजों का डायलिसिस किया जाता है उनको भी जरूरी इंजेक्शन नहीं मिल पा रहे हैं। ऐसे में मरीज बाजार से महंगी दवाएं खरीदने को मजबूर हैं। कई मरीज आर्थिक तंगी के कारण दवाएं नहीं खरीद पा रहे हैं, ऐसे में उनका इलाज ही नहीं हो पा रहा है।आलम यह है कि यहां हररोज 15 से 20 मरीजों के डायलिसिस किए जाते हैं। लेकिन, डायलिसिस के बाद लगने वाले जरूरी इंजेक्शन और दवा ही नहीं मिल पाती है। भोपाल ग्रुप फोर इंफोर्मेशन एंड एक्शन संस्था की रचना ढींगरा ने इस संबंध में अस्पताल प्रबंधन और निगरानी समिति के साथ ही इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के जिम्मेदारों को अवगत भी कराया है, लेकिन मरीजों को कोई राहत नहीं मिली है।

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kayakalp award for hospital in bhopal

Raisen District Hospital of Bhopal got Kayakalp Award for the third time

भोपाल मिंटो हॉल में आयोजित कायाकल्प अवॉर्ड फंक्शन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान , स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी ,एसीएस सुलेमान एवं स्वास्थ्य आयुक्त के समक्ष जिला अस्पताल रायसेन को लगातार तीसरे साल कायाकल्प सांत्वना पुरस्कार प्राप्त हुआ। जिसे जिला अस्पताल के सिविल सर्जन एके शर्मा एवं आरएमओ डॉ विनोद परमार ने प्राप्त किया l अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं को उत्तम बनाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। जिसके फल स्वरुप लगातार तीसरे साल कायाकल्प अवॉर्ड सांत्वना पुरस्कार के रूप में प्राप्त हुआ है। इस पुरस्कार में 300000 की राशि अस्पताल की व्यवस्थाओं पर काम करने के लिए दिए हैं। इसमें से 25% अस्पताल में कायाकल्प के संदर्भ में अच्छा काम करने वाले स्टाफ को वितरित किया जाएगा lहर साल कायाकल्प अभियान के तहत जिला अस्पताल का मूल्यांकन तीन स्तर में किया जाता है सर्वप्रथम इंटरनल एसेसमेंट किया जाता है इंटरनल एसेसमेंट मैं 70% आने के बाद पियर एसेसमेंट होता है पियर असेसमेंट में 70% आने के बाद राज्य स्तरीय एसेसमेंट किया जाता है तथा राज्य स्तर में 70% अंक प्राप्त करने के पश्चात पुरस्कार वितरण किया जाता है। लगभग साढे 450 बिंदुओं पर जिला अस्पताल की गुणवत्ता एवं कार्य विधि कायाकल्प अभियान के तहत हर साल जांची जाती है।

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MBBS students will go to china

MBBS Students: First batch of Indian students will go to China very soon

10.08.2022
चीन ने कहा कि उसने स्वदेश वापसी के बाद कोविड-19 से जुड़ी वीजा पाबंदियों के कारण घर में फंसे भारतीय विद्यार्थियों की वापसी की प्रक्रिया शुरू की है और इनका पहला बैच बहुत जल्द आ सकता है। इससे चीन स्थित कॉलेजों में पढ़ाई दोबारा शुरू करने की प्रतीक्षा कर रहे हजारों विद्यार्थियों में उम्मीद जगी है। यहां संवाददाताओं से बातचीत के दौरान चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन से चीनी राजनयिकों की उन सोशल मीडिया पोस्ट के बारे में पूछा गया, जिसमें विदेशी विद्यार्थियों के लिए नयी वीजा नीति लाने की बात कही गई है।इस सवाल पर वांग वेनबिन ने कहा, ”हम चीन में विदेशी विद्यार्थियों की वापसी की दिशा में गहनता से काम कर रहे हैं और भारतीय छात्रों की वापसी के लिए यह प्रक्रिया शुरू हो गई है।” चीन द्वारा पढ़ाई के लिए तुरंत लौटने के इच्छुक विद्यार्थियों के नाम मांगे जाने के बाद भारत ने कई सौ विद्यार्थियों की सूची प्रस्तुत की है। वांग ने उम्मीद जताई कि बहुत जल्द भारतीय विद्यार्थियों के पहले बैच की वापसी होगी। यह पूछे जाने पर कि चीन वापस आने के इच्छुक भारतीय विद्यार्थियों के बारे में यहां भारतीय दूतावास द्वारा उपलब्ध कराई गई सूची की प्रक्रिया किस चरण में है, उन्होंने कहा कि संबंधित जानकारी जल्द ही जारी की जाएगी।चीन में पढ़ाई कर रहे 23,000 विद्यार्थी, जिसमें ज्यादातर चिकित्सा शिक्षा की पढ़ाई कर रहे हैं, भारत वापस आने के बाद कोविड-19 से जुड़े वीजा प्रतिबंधों के कारण फंस गये और पढ़ाई के लिए चीन नहीं लौट सके। हाल के हफ्तों में श्रीलंका, पाकिस्तान, रूस और कई अन्य देशों के कुछ विद्यार्थी चार्टर्ड विमानों से चीन पहुंचे। चीन भी विभिन्न देशों से उड़ानों की अनुमति दे रहा है, लेकिन अभी तक भारत-चीन के बीच उड़ान सेवा शुरू नहीं की गई है।

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Ayushman scheme failed in punjab

After private hospitals, Ayushman scheme stalled in government institutions of Punjab

स्वास्थ्य बीमा योजना, आयुष्मान योजना के लाभार्थियों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है क्योंकि निजी अस्पतालों ने उनके लिए पहले ही अपने दरवाजे बंद कर लिए थे और अब सरकारी अस्पतालों में ‘आरोग्य मित्रों’ ने भी उनकी सहायता करना बंद कर दिया है।आयुष्मान योजना के लाभार्थियों की सहायता के लिए सरकारी अस्पतालों में तैनात 150 ‘आरोग्य मित्र’ ने अपनी सेवाएं देना बंद कर दिया क्योंकि उन्हें पिछले दो महीनों से वेतन नहीं मिला है। वे वहां योजना के लाभार्थियों की मदद करने के लिए थे ताकि उन्हें आसानी से इलाज मिल सके।उनके विरोध के परिणामस्वरूप, आयुष्मान भारत मुख मंत्री सेहत बीमा योजना योजना राज्य भर के सभी सरकारी अस्पतालों में ठप हो गई है। यह योजना कार्ड धारकों को 5 लाख रुपये तक का कैशलेस स्वास्थ्य उपचार सुनिश्चित करती है।अफसोस की बात है कि सरकार द्वारा बकाया राशि की प्रतिपूर्ति करने में विफल रहने के बाद, निजी सूचीबद्ध अस्पतालों ने स्वास्थ्य योजना के पात्र लाभार्थियों के लिए पहले ही अपने दरवाजे बंद कर लिए थे।जून से वेतन नहीं मिलने वाले आरोग्य मित्रों ने मंगलवार से लाभार्थियों के आयुष्मान कार्ड की प्रोसेसिंग बंद कर दी है। प्रदर्शनकारी कर्मचारियों ने दावा किया कि आउटसोर्सिंग एजेंसी – एमडी इंडिया – को राज्य स्वास्थ्य एजेंसी से धन नहीं मिला है, जो राज्य में योजना के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी है।आरोग्य मित्रों में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमारे पास हड़ताल पर जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था क्योंकि हम बिना वेतन के हैं। सरकार को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए और एमडी इंडिया को भुगतान करना चाहिए।

इंडोर मरीज सबसे ज्यादा प्रभावित

योजना के तहत विभिन्न अस्पतालों में भर्ती मरीजों को इलाज के लिए जारी नहीं रख पाने के कारण उन्हें मझधार में छोड़ दिया गया है। साथ ही, जिन रोगियों को छुट्टी की आवश्यकता होती है, वे आगे नहीं बढ़ सकते क्योंकि उन्हें आरोग्य मित्र से मंजूरी की आवश्यकता होती है जिन्होंने काम करना बंद कर दिया है।मानसा की लाभार्थी रोगी चरणजीत कौर के एक परिजन भूपिंदर सिंह ने कहा, “हमारा मरीज गवर्नमेंट राजिंद्र अस्पताल में भर्ती है और बहुत गंभीर है। हमें इलाज करवाना है। हालांकि, आरोग्य मित्र ने कार्ड को प्रोसेस करने से मना कर दिया है। हम महंगे लैब टेस्ट का खर्च नहीं उठा सकते।

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Gwalior treatment negligence case

Justice got justice after 9 years in Gwalior treatment negligence case

10.08.2022
ग्वालियर की 3 साल की मासूम बच्ची गार्गी की मौत के 9 साल बाद कोर्ट का फैसला आया है, जिसमें उपभोक्ता फोरम इंदौर ने ग्वालियर के मेहरा अस्पताल और मैस्कॉट अस्पताल पर 10 लाख का जुर्माना लगाया है। हालांकि इसके लिए मासूम के पिता ने थाने से लेकर उपभोक्ता फोरम कोर्ट तक लंबी लड़ाई लड़ी। अस्पताल में निमोनिया से पीड़ित बच्ची को आईवी फ्लूड दिया जाता रहा। साथ ही ट्रीटमेंट शीट से भी छेड़छाड़ की गई थी।
मासूम को निमोनिया होने पर उसके पिता ने इलाज के लिए उसे ग्वालियर के प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया था, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि बच्ची को बचाने के लिए वे उसे जिस अस्पताल में लेकर जा रहे हैं, वहां से वह लौटकर नहीं आएगी। दो प्राइवेट अस्पतालों के बिना डिग्री वाले डॉक्टर, ICU के अनट्रेंड स्टॉफ की लापरवाही से माता-पिता ने अपनी मासूम बच्ची को हमेशा के लिए खो दिया।

1 घंटे के भीतर 500ml नॉर्मल सलाइन की बोतल चढ़ाई

घटना 25 जनवरी 2013 की है। तीन साल की बेटी के पिता मनोज उपाध्याय ग्वालियर में एडवोकेट हैं। शहर के थाटीपुर चौहान प्याऊ में उनका निवास है। उन्होंने अपनी बेटी गार्गी को मेहरा बाल चिकित्सालय अनुपम नगर में भर्ती कराया। यहां के डॉक्टर डीडी शर्मा ने यहां से रेफर कर दिया। गार्गी को निमोनिया की शिकायत थी। मेहरा बाल चिकित्सालय में डॉक्टर आरके मेहरा अस्पताल के संचालक थे। डॉ. अंशुल मेहरा बच्चों के डॉक्टर थे। डॉ. अंशुल मेहरा खुद को एमडी पीडियाट्रिशियन यूएसए की एमडी डिग्री होना बताते हुए ग्वालियर में मरीजों के साथ धोखाधड़ी करते थे। बेबी गार्गी का इलाज भी एमडी पीडियाट्रिशियन यूएसए बताते हुए किया। गार्गी को निमोनिया होते हुए भी मेहरा हॉस्पिटल में 1 घंटे के भीतर 500ml नॉर्मल सलाइन की बोतल चढ़ा दी गई और तबीयत बिगड़ने पर भी आईवी फ्लूड दिया जाता रहा। इससे बेबी गार्गी के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ा। डॉ. अंशुल मेहरा ने बच्ची को भर्ती कराने के 3 घंटे बाद वेंटिलेटर की आवश्यकता बताते हुए मैस्कॉट हॉस्पिटल रेफर कर दिया था।

बिना डिग्री के एमडी पीडियाट्रिशियन कर रहे थे इलाज
गार्गी के पिता एडवोकेट मनोज उपाध्याय ने मध्यप्रदेश मेडिकल काउंसिल में मैस्कॉट के डॉ. अंशुल मेहरा की एमडी पीडियाट्रिशियन की डिग्री पर सवाल करते हुए शिकायत की थी। इस पर डॉ. अंशुल मेहरा ने मध्यप्रदेश मेडिकल काउंसिल भोपाल के समक्ष माफी मांगी थी। साथ ही कहा था कि वह एमडी पीडियाट्रिशियन नहीं है और भविष्य में उक्त डिग्री का उल्लेख अपने नाम के आगे नहीं करेंगे।

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Government is bringing TMR scheme

Central government is bringing TMR scheme one medicine one price policy can be implemented from 15

आम लोगों को बीपी, शुगर, कैंसर और दिल की बीमारी सहित अन्य दवाओं की कीमतें कम करने के लिए केंद्र सरकार 15 अगस्त से टीएमआर (ट्रेड मार्जिन रेशनालाइजेशन) स्कीम लाने जा रही है। एक दवा, एक दाम थीम से जुड़े योजना का खाका तैयार कर लिया गया है और 15 से इसे लागू करने की तैयारी है। इस संबंध में पिछले दिनों केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने देश के विभिन्न औद्योगिक संगठनों से चर्चा भी की थी।इंदौर लघु उद्योग भारती के प्रतिनिधियों ने भी इसमें हिस्सा लिया था। औद्योगिक संगठन सस्ती दवाएं देने के तो पक्ष में हैं। उनका कहना है इस स्कीम से देश में बड़ी फार्मा कंपनियों को तो फायदा मिलेगा, लेकिन प्रतिस्पर्धा में छोटी और मध्यम उद्योगों (MSME) को बड़ा नुकसान होगा। ट्राइबल, रूरल सहित पहाड़ी इलाकों में दवाओं का वितरण और उपलब्धता प्रभावित होगी। बिना वितरण व्यवस्था जाने इसे लागू करने से एमएसएमई को बड़ा नुकसान होगा।9हजार करोड़ का कारोबार है मप्र में दवाओं का41 हजार होलसेल और रिटेल लाइसेंस होल्डर हैं

दरों के बजाय दवाओं के मार्जिन तय करना चाहिए

ऑल इंडिया ड्रगिस्ट एंड केमिस्ट एसोसिएशन के महासचिव राजीव सिंघल का कहना है दवाओं के दाम कम होना ही चाहिए, आम जनता को राहत मिलेगी, लेकिन दवा के एक कॉम्बिनेशन की दरें एक करने से बड़ी कंपनियां तो सर्वाइवर कर जाएंगी, लेकिन छोटे उद्योगों को मुशिक्ल होगी। दरों के बजाए दवाओं के मार्जिन तय करना चाहिए।

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