पीएमटी पास हैं यार.. घंटा ।

हम सब चिकित्सक वर्ग से हैं, आपस में सीनियर जूनियर साथी आदि सब हैं, एक दुसरे के काम भी आते हैं और आना भी चाहिए । एमसीआई का कोड ऑफ़ कंडक्ट कहता है कि एक डॉक्टर दूसरे डॉक्टर की फैमिली के इलाज के लिए पैसा नहीं ले सकता/लेना चाहिए । अधिकांश डॉक्टर साथियों के साथ अच्छी निभाते हैं चाहे वो अनजान ही क्यूँ ना हो, लेकिन कई बार ऐसी घटनाएं भी सामने आती हैं जब यारी दोस्ती कंडक्ट की ध्वजियाँ उड़ती हैं, इनकी चर्चा भी होती है । चर्चा चलनी भी चाहिए । जब बात युवा चिकित्सकों की युवाओं के साथ ही हो ।

एक सरकारी डॉक्टर है बेचारा, सरकारी डॉक्टर को चिकित्सक समाज में अदना ही माना गया है, गाँव का डॉक्टर सरकारी डॉक्टर । बेचारा सरकारी कहीं सैंकड़ों किलोमीटर दूर सेवा दे रहा है, पीछे से उसकी पत्नी बीमार पड़ती है जो गाँव में हैं, सरकारी उसे बताता है कि फलाने बॉस हैं शहर में उन्हें जाकर दिखा आओ, मैं उनको आठ दस साल से हाय हेलो करता हूँ, मैडम जाती हैं, दिखाती हैं, चलते समय पूछती हैं कि डॉक्टर शाहब फीस क्या दूं ? जवाब आता है कि “अपने हिसाब से देदो”, बेचारी बीए पास अपना हिसाब क्या समझे, इधर उधर देखती है तो एक दीवार पर A4 साइज के पेपर पर प्रिंट निकाल के चिपकाया हुआ है ‘फीस 200 रुपये मात्र’, सोचती है ये डॉक्टर शाहब तो अपने सरकारी जी के ख़ास हैं सो सौ रुपये का नोट बढ़ा देती है, शाहब उसे अपने गल्ले के हवाले कर बोलते हैं, अगला पेशेंट भेजो भाई । बेचारा सरकारी । एक दिन सरकारी के मामाजी बीमार पड़ते हैं, चूँकि मामाजी आम किसान हैं सो वो उनका ख़ास ख्याल रखता है बाकी सरकारी के पिताजी आदि तो चुपचाप माहौल के हिसाब से फीस की पर्ची कटवा इलाज करवाते आ रहे हैं, मामाजी पूछते हैं कि किसे दिखाऊं, सरकारी सोचता है किसी बैचमेट को ही दिखला देते हैं, चूँकि सात साल सीनियर तो अपने हिसाब से देदेने के लिए कहेगा, बैचमेट तो शायद मामाजी को मामाजी माने, कोई नहीं बोल दिया कि जाके कह देना सरकारी का किसान मामा हूँ, मामाजी से 200 वसूले गये, बात की तो जवाब मिला कि यार फोन करके बता दिया करो कि मामाजी आयेंगे, ठीक सा, करेंगे । फिर मामाजी को कोई तकलीफ हुई तो याद आया कि एक डॉक्टर शाहब हैं उनको दिखाना है, उन डॉक्टर शाहब से सरकारी कि काफी बातचीत होती थी, शाहब कि चिकित्सक पत्नी पीजी में बोनस चाहती थी और सरकारी बेचारा दिलवाने में जुटा था, यह तो घर का मामला है, फिर भी फोन कर देते हैं क्यूंकि अस्पताल के उत्तर कि गली में बैठने वाले डॉक्टरों को फोन पर बताना पड़ता है कि मामाजी आयेंगे, सो फोन कर दिया कि मामाजी आयेंगे, मामाजी गए, उठने लगे तो शाहब ने ही कह दिया कि फीस ? व्हेर इज फीस मामा ? मामा ने कहा कि सरकारी भांजे ने फोन किया था, शाहब ने यह कहते हुए कि ‘बहुत फोन आते हैं’, दुसरे मरीज को देखने लगे, मामाजी ने दो सौ बढाए और शाहब द्वारा लिखी बड़ी जांचें और एक्सरे आदि करवाने निकल पड़े जबकि उनके पास सात दिन पहले कि सभी जांच और एक्सरे था, चलो कोई ना, शाहब का अधिकार क्षेत्र । बात हुई निमडी ।

हाल ही में फिर मामाजी को कोई तकलीफ हुई तो सरकारी ने सोचा क्या करें, एक वरिष्ठ चिकित्सक को फोन किया “शाहब मैं सरकारी बोल रहा हूँ, मेरे मामाजी आयेंगे दिखाने, प्लीज फीस मत लेना”, शाहब ने डांट पिला दी कि तूने फीस का कैसे कहा ? हम इतने नालायक हैं क्या कि तेरे मामा से फीस लेंगे, आइंदा ऐसी बात मत कहना । शाहब को कैसे समझाता कि क्यूँ यह सब कहना पड़ा ।

सरकारी के पास जवाब नहीं है, आपके पास हो तो देदें ।

अरे हाँ, हम पीएमटी पास हैं, आईएऐसों पर भारी हैं हम । पीएमटी पास हैं यार ।

# नाम नहीं लिखे गये हैं ।
# फेसबुक पर नहीं डाला जा रहा है |
# जगह सीकर, राजस्थान है ।
# चिकित्सक यूनिटी जिंदाबाद ।

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